कैसे कपिल देव की माँ ने अकेले अपने 7 बच्चों की करी परवरिश, जानिए राज कुमारी निखन्ज का संघर्ष

कपिल देव एक ऐसा नाम है जिन्हें किसी परिचय की आवश्यकता नहीं है। भारतीय खेल जगत में कपिल देव एक अलग पहचान है। कपिल देव वह नाम है जिन्होंने भारत को वर्ल्ड चैंपियन की उपलब्धि हासिल कर आई । जब इन्होंने ऑल राउंडर बनकर के हाथ में बल्ला उठाया तो बेहतरीन और शानदार गेंदबाजों के छक्के छुड़ा दिए वहीं जब इन्होंने अपने हाथ में बॉल थामा तो दिग्गज बल्लेबाज को धूल चटा दी ।

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बता कपिल देव को क्रिकेट से सन्यास लिए काफी वर्ष बीत चुके हैं कपिल देव ने सन 1983 में पहली बार भारत को विश्व कप का खिताब भारत को जीतवाया था। कपिल देव के द्वारा खेली गई शानदार पारी को कोई भी आज तक नहीं भूल सका है । जनरेशन चाहे कोई भी हो लेकिन जब कपिल देव को 1983 का मैच खेलता हुआ देखा जाता है तो वह सभी के लिए काफी सुखद अहसास होता है।

बता दें कि कपिल देव का जन्म चंडीगढ़ में हुआ था ।इनके पिता का देहांत इनके बचपन में हो गया था। कपिल देव की माँ राजकुमारी निखंज ने अकेले अपने बूते पर कपिल देव एवं इनके छह और भाई बहनों का पालन पोषण किया और उनकी बेहतर परवरिश प्रदान की। शुरुआती दिनों में कपिल देव के क्रिकेट कैरियर की मार्गदर्शन माँ को ही मिला वहीं सामने आई थी जिस दौर में खेलकूद को केवल बर्बादी समझा जाता था उस दौर में कपिल देश को उनकी मां ने खेलने के लिए बढ़ावा दिया था।

भारत में फास्ट बॉलर है ही नहीं

दोस्तों को बता देगी कपिल देव की माँ ने इन्हें आगे बढ़ाने में इनका हमेशा सपोर्ट किया। इनकी प्रेक्टिस के समय में इनके संतुलित एवं पोषक आहार का पूरा ध्यान रखती थी । वह हमेशा ही अपने बेटे को बेहतरीन परफॉर्मेंस देने के लिए प्रेरित किया करती ।बताया जाता है कि 16 वर्ष की उम्र में जब कपिल देव नेशनल क्रिकेट कैंप में थे तब उन्हें खाना कम मिलता था । कपिल देव ने अपने कोच से इसकी शिकायत करते हुए कहा था कि “वह एक फास्ट बॉलर है उन्हें अधिक खाने की जरूरत होती है।”

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इस पर उनके कोच ने कहा था कि भारत में कोई फास्ट बॉलर है ही नहीं ।कपिल देव को यह बात काफी अखर गई थी ।उन्होंने अगले 3 सालों में भारत का पहला फास्ट बॉलर बन करके अपने कोच के इस कथन को गलत सिद्ध कर दिया । इसके बाद अगले दो दशकों तक कपिल देव ने भारतीय क्रिकेट टीम की गेंदबाजी की कमान संभाले रखी । कपिल देव एक बेहतरीन खिलाड़ी थे लेकिन उनकी असली विजय सन 1983 का विश्व कप था।

किसी को नहीं थी जीत की उम्मीद

आपको बता दें कि सन 1983 के वर्ल्ड कप से कुछ समय पहले ही कपिल देव भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान बने थे । इस दौरान उन्होंने पिछले श्रंखला के दो एडिशन में सिर्फ एक ही मैच पर जीत हासिल की थी। सभी खिलाड़ियों को ऐसा लग रहा था कि जल्द ही भारतीय टीम विश्व कप की इस श्रृंखला से बाहर हो जाएगी । खिलाड़ियों ने छुट्टियों की टिकट भी पहले से ही बुक कर ली थी।

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लेकिन दोस्तों जब जिंबाब्वे के विरुद्ध पहले मैच में कपिल देव पहली बार मैदान पर सामने आए तब भारत ने केवल नौ रन पर चार विकेट खो दिए थे ।।इसके बाद कपिल देव ने ऐसी पारी खेली जिसकी किसी ने कल्पना भी नहीं की थी। कपिल देव ने भारत के लिए 175 रन की शानदार पारी खेली थी और भारत को जीत हासिल करवाई थी। धीरे-धीरे भारतीय क्रिकेट टीम इस विश्व कप के फाइनल राउंड तक पहुंचे सभी बाधाओं को पार करते हुए भारतीय टीम ने सन 1983 में पहली बार विश्व कप का खिताब जीता और वर्ल्ड कप की ट्रॉफी अपने नाम करके भारत लौटे। भारत की जीत ने लाखों लोगों को आगे प्रेरित किया था और हजारों क्रिकेट के खिलाड़ियों का जन्म इस जीत ने किया था।

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